भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नइकी पतइअन में सिहरी जगा के / शशिभूषण सिंह 'शशि'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नइकी पतइअन में सिहरी जगा के,
ढरक जाला नेह चान, नैनन में आके।
सुधि साँझ तुलसी तर बार जाले दिअना,
लहसि जाला रोपल कुल्हि, हिअरा के बिअना।
अँखुआइल बिरवा पानी बिनु झुरा के।
उखी-बिखी रतिया जब करवट घुमावस,
कलि-फूल-भँवरन के चरचा चलावस,
मन के महलिया भीतर गुनगुना के।
सपना समुन्दर अस अमड़ेला मनवाँ,
कूक सुनि कोइली के बिहँसे परनवाँ,
रेत के घेरवना अस सपना ढहा के।