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नई किताब की गंध / आनंद गुप्ता

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अभी-अभी खोली है नई किताब
और भक्क से आई सुवासित गंध ने
किया है मेरा स्वागत।

नई किताब की गंध में
मैं अक्षरों की सुगंध
महसूस कर पा रहा हूँ कहीं भीतर
उन विचारों की सुगंध भी
जो इन अक्षरों के भीतर कहीं दबी पड़ी है।

नई किताब की गंध में
उम्र के तपे दिनों
स्याह रातों की सुगंध है
और कुछ अधूरे सपनो का भी।
नई किताब की गंध में
उस आदमी के पसीने की सुगंध है
जिनके हाथों ने टांके हैं अक्षर।

नई किताब की गंध में
शामिल है एक कटे हुए पेड़ की घायल इच्छाएँ
एक चिड़ियाँ का उजड़ा हुआ आशियाना
और किसी बच्चे के
स्मृतियों में गुम गए बचपन की गंध।

अभी-अभी खोली है नई किताब
मैं विचारों के साथ-साथ
एक पेड़,एक चिड़ियाँ,
कुछ अधूरे सपनों,छूटी स्मृतियों
और पन्नों पर अक्षर टाँकते
दो हाथों की कहानी पढ़ रहा हूँ।