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नई कोपलें / राजेश अरोड़ा
Kavita Kosh से
बिट्टो को कल लगा था
बरसो से,
आंगन से छत को जाती थी
जो बेल अंगूर की
आज अचानक मुरझा गयी है
आज लगता है
बेल अभी मुरझाई नहीं है
बस कुछ पत्ते थे
जो बदलते मौसम
साथ छोड़ गये थे बेल का
अभी कुछ नई कोपलें फूटेंगी
इस बार भी
खट्टे-मीठे अंगूर लगेंगे
बिट्टो खट्टे अंगूर चुन चुन खायेगी
मिट्ठे दादी के लिये रख लेगी
दादी अपने पोपले मुंह से
अंगूर खाते हुए
बिट्टो को ऐसे देखेगी
जैसे बिट्टो को कोई नहीं देखता
बिट्टो फिर दैड़ कर
छत पर चड़ जायेगी
लेकिन लगता है
अंगूर की बेल तो मुरझा गयी है
अंगूर की बेल मुरझाई है
या फिर कुछ नई कोपलें आयेंगी
बेचारी बिट्टो
कुछ जान नहीं पाती है।