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नई क्राकरी के जो बर्तन हाथ से छूटेंगे / हेमन्त शेष

नई क्राकरी के

जो बर्तन हाथ से छूटेंगे--

टूटेंगे।

फेंक दिए जाएंगे उनके अवशेष।

वे भी समुद्रों तक पहुँच जाएंगे

एक न एक दिन।

पर नए और उतने ही दिलकश

कैसे बने रहेंगे वे हमारे भीतर?

बहुत-बहुत दिनो तक समुद्र ये

कभी न कह पाएंगे।