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नई घड़ी / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
दीदी! देखो नई घड़ी।
नई घड़ी! ये नई घड़ी!
इसमें लाइट जलती है,
सुई टिक-टिक चलती है,
चेहरा इधर घुमाओ तो,
कितने बजे, बताओ तो,
पाँच बजे या सात बजे,
या फिर पूरे आठ बजे,
पापा दफ्तर जाएँगे,
जब भी नौ बज जाएँगे,
पापा कितने अच्छे हैं,
प्यार ढेर-सा करते हैं,
घड़ी उन्होंने दी मुझको,
कैसी लगी कहो, तुमको?
अच्छी है, ये बोलो ना!
अब अपना मुँह खोलो ना!
कब से मैं ही बोल रहा,
तुमने कुछ भी नहीं कहा।