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नई दुनिया के लिए / संज्ञा सिंह
Kavita Kosh से
भोर के सपने की तरह
अर्थवान है उसका सब कुछ
जिसने ठीक समय पर देखा है सपना
गुलाब के फूल की तरह
खिल रहा है उसका जीवन
हल्की रंगत और ख़ुशबू
फैल रही है उसके आस-पास
रात के पहले पहर के सपनों की तरह
बे-अर्थ हो गए हैं वे
जिन्हें दिखा दिए गए सपने
समय से पहले
दुश्चिन्ताए तैर रही हैं उनके आस-पास
जो कच्ची उम्र के हत्यारों
और अँखुवाए सपनों के
सौदागरों के हवाले हुए हैं
अन्धे साँप की तरह
जी रहे हैं जीवन
नौजवान सपनों से हरी होती है दुनिया
नई दुनिया को बचाने वाले विचार
पकी उम्र में आते हैं अक्सर !