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नई भोर / अशोक चक्रधर
Kavita Kosh से
खुशी से सराबोर होगी
कहेगी मुबारक मुबारक
कहेगी बधाई बधाई
आज की रंगीन हलचल
दिल कमल को खिला गई
मस्त मेला मिलन बेला
दिल से दिल को मिला गई
रात रानी की महक
हर ओर होगी
कल जो नई भोर होगी
खुशी से सराबोर होगी।
कहेगी बधाई बधाई !
चांदनी इस नील नभ में
नव उमंग चढ़ा गई
और ऊपर और ऊपर
मन पतंग उड़ा गई
सुबह के कोमल करों
में डोर होगी
कल जो नई भोर होगी
खुशी से सराबोर होगी।
कहेगी बधाई बधाई !
यामिनी सबके हृदय में
अमृत कोष बना गई
हीर कनियों सी दमकती
मधुर ओस बना गई
स्नेह से भीगी सुबह की
पोर होगी
कल जो नई भोर होगी
खुशी से सराबोर होगी।
कहेगी बधाई बधाई