अग्रदूत नयी सहस्राब्दी का
उदित होता पर्वत -श्रृंखलाओं से
जो प्रसारित होगा
नयी शताब्दी में !
सर्वप्रथम फेलता प्रकाश ,-
सूर्योदय हो रहा है !
अर्द्धशतक मैं जी चूका हूँ
मात्र पृथ्वी की परिक्रमा हेतु
आकाश में शांति-रश्मियाँ भरने के लिए
ज्योति से दुःख के अँधेरे को मिटाने के लिए,
पृथ्वी के मुखमंडल से !
तुम्हारा जो चढ़ चुके हो मेरे साथ
पर्वतों पर इस शताब्दी के
मेरे मित्रों समस्त भूमंडल के !
मैं फिर से करता हूँ आव्हान
समय आगया है छा जाने का समस्त पर्वत श्रृंखलाओं पर
नयी शताब्दी की !
फैलाओ आशा की किरणें सारे संसार में
फिर से सहस्त्रों बार अन्दर व बाहर समाज के
और अपने परितः !
मैं आव्हान करता हूँ अपना भी जैसे तुम्हारा
फिर और फिर व्यापक और व्यापक
फैलाओ आशा की किरणें संसार और समाज में !
अनुवादक: मंजुला सक्सेना