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नई शताब्दी (२) / देसाकू इकेदा

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जोड़ना व्यक्ति से व्यक्ति को और विचार से विचार को
प्लावन करना आगे -पीछे ,संस्कृतियों की धाराओं में,
जोड़ना सभ्यताओं को ,भूत को - वर्तमान को
ये हमारा संयुक्त प्रयास है !
आशा के किरण -जाल पर
गुम्फित बुद्ध के मानव प्रेम से
ऐसे आएगा सुप्रभात
नयी शताब्दी में प्रवेश का जिसमे
दमन परिवर्तित होगा स्वातंत्र में ,
पार्थक्य परिवर्तित होगा विलय में ,
और विरोध बन जाएगा सह-अस्तित्व!
सहजीवन !
मित्रों और साथियों से मिलने के लिए
मैं करता रहूँगा यात्रा सारे विश्व की
ताकि मेरी निष्ठां करे सृजन
परस्पर सामंजस्य मानव समाज में
यही है उद्देश्य सत्य और सौहार्द्र का !
यही है परिणाम अंतिम ,संभाषण का .
और पुनः संभाषण का ,अतः मिलाएं हम हाथ
सामना करने को चुनोती, इस शतक के शिखरों की !
करें अंतिम प्रयास सम्मलेन को सुखद बनाने का
आशा से परिपूर्ण ज्यूँ ज्यूँ हम अग्रसर हो,
एक सफल व समृद्ध संभाषण की ओर

अनुवादक: मंजुला सक्सेना