नई सदी की नई बात है! / शम्भुनाथ तिवारी
भोर हुई सूरज की लाली,
हँसकर आसमान पर छाई।
नई सुबह का स्वागत करने,
किरन-परी धरती पर आई।
काली रात कटी है दुख की,
आया सुख का नवल प्रात है।
नई सदी की नई बात है!
नई राह पर चलना है तो,
कष्ट हमें सहना ही होगा।
नए दौर के नए सफर में,
आगे – आगे रहना होगा।
तारे नए, नया सूरज भी,
चाँद नया और नई रात है।
नई सदी की नई बात है!
धरती के हम शांतिपुजारी,
न्याय-धर्म के रखवाले हैं।
लेकिन कोई आँ दिखाए,
तनिक नहीं दबनेवाले हैं।
दुश्मन होगा डाल-डाल तो,
हम भी सारे पात-पात हैं।
नई सदी की नई बात है!
हमने जो कल तक देखे थे,
सपने, सच होने वाले हैं।
वक्त बहुत खोए हैं लेकिन,
और नहीं खोने वाले हैं।
दुनिया को दिखालाना होगा,
हम भी उनके साथ-साथ हैं।
नई सदी की नई बात है!
नई सदी में नई उमंगें,
हमको साथ लिए जीना है।
दो फौलादी हाथ साथ में,
पत्थर सा अपना सीना है।
होती सुबह सुहानी उसकी,
जिसकी जितनी कठिन रात है।
नई सदी की नई बात है!