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नई सदी ने / शैलेन्द्र शर्मा
Kavita Kosh से
नई सदी ने
गली-गली में
ऐसा किया विकास
झेल रही है
बूढ़ी पीढ़ी
रोज नये संत्रास
उजले-उजले
सपने बोये
पनपे, स्याह हुए
औलादें
हो गईं पराई
जबसे ब्याह हुए
उनके हिस्से
पड़ी दुछत्ती
बाजू में संडास
कहाँ दवाई
खाना भी कब
मिलता टाइम से
चिपके रहते हैं
खटिया पर
थूके 'च्युंगम' से
पेपर को
पढ़ने की खातिर
'मैग्नीफाइंग-ग्लास'
पिंजर पर
लटका करती है
वर्षों से उतरन
तन से ज्यादा
झेल रहा मन
पोर-पोर टूटन
नई सदी ने
रच डाला है
एक नया इतिहास