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नई सुबह के तारे हम / भगवतीप्रसाद द्विवेदी
Kavita Kosh से
हम बागों की हरियाली हैं-
चिड़ियों के चहकारे हम!
हम नदियों की कल-कल, छल-छल
नई सुबह के तारे हम!
हममें है फूलों की खुशबू
झरनों का मधुमय संगीत,
हममें रंग भरे तितली के
हम प्रकृति के हैं नवगीत।
हम श्रोता हैं परी कथा के
दुनिया के उजियारे हम!
हम जीवन के मीठे सपने
हँसी-खुशी के बाइस्कोप,
हम जब खुलकर मुस्कातेहैं
दुख हो जाता पल में लोप।
चहकें-महकें मगर न बहकें
सबसे न्यारे, प्यारे हम!
हम बागों की हरियाली हैं,
चिड़ियों के चहकारे हम!