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नई सुबह में / मधुसूदन साहा
Kavita Kosh से
नई सुबह में
नई सोच को
नये लोक से आने दो।
बातें सभी पुरानी छोड़ो,
अंधे विश्वासों को तोड़ो,
उपवन को महकाना है तो
फूलों से फूलों को जोड़ो,
ओस नहाई,
पंखुरियों को
खुलकर अब मुसकाने दो।
पंछी छेड़े नए तराने,
झरने गाए नूतन गाने,
हर डाली पर नए राग के
धुन सिखलाए नये घराने,
मुक्त व्योम की
नई किरण को
नए सुरों में गाने दो।
अच्छाई का परचम फहरे,
कदम उठे तो कभी न ठहरे,
हर अंतर में सम्बंधों की-
गगा-जामुनी लहरें लहरे,
नव विहान में
नई हवा को
तन-मन को सहलाने दो।