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नई हंसी / रघुवीर सहाय

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महासंघ का मोटा अध्यक्ष

धरा हुआ गद्दी पर खुजलाता है उपस्थ

सर नहीं,

हर सवाल का उत्तर देने से पेश्तर

बीस बड़े अखबारों के प्रतिनिधि पूछें पचीस बार

क्या हुआ समाजवाद

कहें महासंघपति पचीस बार हम करेंगे विचार

आंख मारकर पचीस बार वह, हंसे वह, पचीस बार

हंसें बीच अखबार

एक नयी ही तरह की हंसी यह है

पहले भारत में सामूहिक हास परिहास तो नहीं ही था।

जो आंख से आंख मिला हंस लेते थे

इसमें सब लोग दायें-बायें झांकते हैं

और यह मुंह फाड़कर हंसी जाती है।

राष्ट्र को महासंघ का यह संदेश है

जब मिलो तिवारी से – हंसो - क्योंकि तुम भी तिवारी हो

जब मिलो शर्मा से – हंसो - क्योंकि वह भी तिवारी है

जब मिलो मुसद्दी से

खिसियाओ

जांतपांत से परे

रिश्ता अटूट है

राष्ट्रीय झेंप का ।