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नई हर शै पे ऐसे आशना है / राम मेश्राम
Kavita Kosh से
नई हर शै पे ऐसे आशना है
नई औरत पे जैसे दिल फ़िदा है
वो इक अल्सेशियन है बॉस का जो
रकीबों को लपक कर काटता है
कयामत है कि बारिश है, हमें क्या
कि किस बस्ती का क्या-क्या बह गया है
मियाँ हम ही तो हैं वो सर्वहारा
जिन्हें हमदर्द लीडर ने ठगा है
खदेड़ा था जिसे जन्नत से इक दिन
वही दिल आज सम्मानित हुआ है
वो इन्टरनेट, ये टी०वी० के चैनल
जवाँ मन ईडियट-सा देखता है
वो साधु है तो क्यूँ गाहे-बगाहे
तराने औरतों के छेडता है ?
ये अय्याशी, ये दारू और रिश्वत
यही तो जीनियस का रास्ता है !
लिए तलवार टूटी हाथ में, दिल
समूचे आस्माँ से लड रहा है