नए अर्थ की खोज / मिथिलेश श्रीवास्तव
एक भी सुबह जो होती मन लायक
रंगों के रचाव में से निकलता एक रंग
जो हमें अच्छा लगता
हर मौसम हर मनःस्थिति हर पल में
अपनी सम्पूर्ण संचित-शक्ति को झोंक देता
एक नये अर्थ की खोज में
जब भी कोई हँसता उन्मुक्त हँसता
और जब रोता सचमुच दुख में रोता
उसके हँसने उसके रोने पर
मैं विश्वास कर पाता
और सारी आकृतियाँ सुडौल होती जातीं ।
मौन सुन्दरता झलकती सुडौल आकृतियों से
एक दूसरे के प्रति आकर्षित होता
थिरकता सिहरता एक मिलन होता
एक सृजन होता विकृतिविहीन
और हर जन्म सुखमय होता जाता
सुखमय जन्म पाकर
विष्णुपद में पिण्डदान देकर
विक्षुब्ध आत्मा की शान्ति
और पुनर्जन्म के लिए
प्रार्थना करने की बजाय
इसी जन्म में होता कुछ सार्थक
जन्म लेता एक आदमी
जिसकी सुबह उसके मन लायक़ होती ।