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नए कवि का दुख / केदारनाथ सिंह

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दुख हूँ मैं एक नए हिन्दी कवि का
बाँधो
मुझे बाँधो
पर कहाँ बाँधोगे
किस लय, किस छन्द में ?

ये छोटे छोटे घर
ये बौने दरवाज़े
ताले ये इतने पुराने
और साँकल इतनी जर्जर
आसमान इतना ज़रा-सा
और हवा इतनी कम-कम
नफरत यह इतनी गुमसुम सी
और प्यार यह इतना अकेला
और गोल-मोल

बाँधो
मुझे बाँधो
पर कहाँ बाँधोगे
किस लय, किस छन्द में ?

क्या जीवन इसी तरह बीतेगा
शब्दों से शब्दों तक
जीने
और जीने और जीने ‌‌और जीने के
लगातार द्वन्द में ?

1965