भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नए पंख / अनिता भारती

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझमें जागी है
नयी आशा
मन चहक रहा है
उड़ने को बेताब
नये पंख मिले हैं मुझे
छोटा- सा घरौंदा क्यों
सारी दुनिया मेरी है

आँखों में भर लूँ
आसमान
दौड़ जाऊं इठलाकर
बादलों पर
सारी दुनिया मेरी है
मन की कलियाँ
सतरंगी सपने बुन रही हैं
सूरज की गमक आँखों में
भर रही है

भिक्षुणी- सा
उन्मुक्त ज्ञान
चारों ओर से बटोर लाऊँ
अंधेरे बुझे कोनों में
सौ-सौ दीप रख आऊँ मैं