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नए पंख / अनिता भारती
Kavita Kosh से
मुझमें जागी है
नयी आशा
मन चहक रहा है
उड़ने को बेताब
नये पंख मिले हैं मुझे
छोटा- सा घरौंदा क्यों
सारी दुनिया मेरी है
आँखों में भर लूँ
आसमान
दौड़ जाऊं इठलाकर
बादलों पर
सारी दुनिया मेरी है
मन की कलियाँ
सतरंगी सपने बुन रही हैं
सूरज की गमक आँखों में
भर रही है
भिक्षुणी- सा
उन्मुक्त ज्ञान
चारों ओर से बटोर लाऊँ
अंधेरे बुझे कोनों में
सौ-सौ दीप रख आऊँ मैं