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नए भवन में नयी गृहस्थी / मानोशी
Kavita Kosh से
नए भवन में
नई गृहस्थी,
डाल-डाल पर तितली तितली|
कली-हृदय कुछ अस्फुट सा है,
स्वप्न, नींद में अंकुर सा है,
लगता जग सुन्दर निष्पापी
हृदय बड़ा सागर जैसा है,
चंचल मन में
कितने सपने,
जीवन खट्टी मीठी इमली|
आँगन में चन्दा उतरेगा,
हँसकर मेरी गोद छुपेगा,
तारो की लोरी सुनकर मन
धीरे-धीरे झूम उठेगा,
नाचेगा जीवन
नन्हें हाथो की डोरी
बन कठपुतली|
खुशियों के ज्यों कलरव उठते
नीड़ चहकते सुबह सवेरे,
जीवन की आपाधापी फिर
कम हो जाती धीरे-धीरे,
रह जाता खाली आँगन, ज्यों
छुप जाती
बादल में बिजली|