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नए शहर के कैफ़े में पहली चन्द घड़ियाँ / फ़ेर्नान्दो पेस्सोआ

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आह, वो पहली चन्द घड़ियाँ नए शहर के कैफ़े में !
एक शान्त दीप्त मौन से पूर्ण,
स्टेशन या बन्दरगाह पर सुबह-सुबह की आमद !

जहाँ अभी-अभी पहुंचे हों
उस शहर के सबसे पहले दिखे पैदल लोग,
और जब हम यात्रा करते हैं,
वह समय के बीतने की अनोखी आवाज़...
बसें या ट्रामें या गाड़ियाँ...
अनूठे देशों में सड़कों की अनूठी छटा...

शान्ति, जो वे देती प्रतीत होती हैं हमारे दुख को,
ख़ुशी-भरी हलचल, जो हमारी उदासी के लिए है उनके पास,
हमारे मुरझाए-हुए मन के लिए नीरसता की अनुपस्थिति !
बड़े, विश्वसनीय ढंग से समकोणीय चौक,
इमारतों की कतारों वाली सड़कें जो दूर जाकर मिल जाती हैं,
एक-दूसरे को काटती सड़कें जहाँ अपनी रूचि का कुछ-न-कुछ
मिल जाता है अकस्मात ही,

और इस सब में, जैसे कुछ उमड़ता है बिना कभी बह निकलने के,
गति... गति...
द्रुत रंग की मानुषिक चीज़ जो आगे बढ़ जाती है और रह जाती है...
बन्दरगाह अपने रुके हुए जहाज़ लिए,
अत्यधिक रूप से रुके हुए जहाज़,
और छोटी नावें पास में, प्रतीक्षा करती हुई...

अँग्रेज़ी से अनुवाद : रीनू तलवाड़