भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नए साल का पहला दिन / गुलाब सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

माँ कहती है--कल आएगा
नए साल का पहला दिन

आज रात भर रोकर दादी
सुबह गीत कोई गाएगी,
घूरे के भी दिन फिरते हैं
दादी अच्छी हो जाएगी,

सूरज-सँग सीढ़ियाँ चढ़ेगा
नए साल का पहला दिन।

नींद नहीं आती दादा को
और न सपने ही आते हैं,
कहने को है बहुत मगर
बस ओंठ काटकर रह जाते हैं,

शायद जान सके मन उनका
नए साल का पहला दिन।

कुछ दीवारों के इस घर में
माँ तो पूज्य लग रही सबको,
अपनी-अपनी तस्वीरों की
पूजा से उबरें हम तब तो,

काश कि यह संभव कर पाए
नए साल का पहला दिन।