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नए साल पर / सिद्धेश्वर सिंह
Kavita Kosh से
सर्दियाँ आ गईं सुस्ताइए,
धूप को ओढिए-बिछाइए ।
बर्फ़ के बेदाग़ सर्फ़ पर अपना,
नाम लिखिए और भूल जाइए ।
माना सचमुच ज़िन्दगी है रंजोग़म,
फिर भी ख़ुशियाँ बाँटिए ग़म खाइए ।
आएगा अच्छा समय विश्वास है,
बस इसी विश्वास में रम जाइए ।
प्यार का एहसास एक अलाव है,
आग अपने प्यार की सुलगाइए ।
हो मुबारक आपको यह साल !
कम से कम इस साल मत भरमाइए ।