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नए सिरे से / प्रेमरंजन अनिमेष
Kavita Kosh से
किसी भोर उठ
एक नये जाये
बाछे-सा महसूस करता हूँ
और सूँघता फिरता हूँ दुनिया को
अपने टटके सुथ्थर
नथुने से !