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नकाब / विनोद पाराशर

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मॆंने-
सिलवाकर रखे हॆं
कई नकाब।
जॆसे भी
माहॊल में जाता हूं
वॆसा ही-
नकाबपोश हो जाता हूं।
तब लोग-मुझे नहीं
मेरे नकाब को जानते हॆं।
ऒर-
मेरी हर बात को
पत्थर की लकीर मानते हॆ।