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नगर की जनता अब भी भूखी-प्यासी है / राकेश जोशी
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नगर की जनता अब भी भूखी-प्यासी है
ख़बर तुम्हारी बहुत पुरानी, बासी है
राजा, महल से बाहर थोड़ा झाँको तुम
चारों और अँधेरा और उदासी है
जिस बेटे को शहर में अफसर कहते हैं
उस बेटे की माँ को गाँव में खाँसी है
हम पेड़ों से ख़ुद ही मिलने जाते हैं
नदी कहाँ अब हमसे मिलने आती है
सपने गर बेहतर दुनिया के टूटे तो
पूरी-की-पूरी पीढ़ी अपराधी है
जहाँ रात में बच्चे भूख से चिल्लाते हैं
चैन से तुमको नींद वहाँ कैसे आती है
तुमको है क्या याद तुम्हारे राजमहल तक
सड़क हमारे गाँव से ही होकर जाती है