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नगर निकल आया है सड़कों पर / केदारनाथ अग्रवाल

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घरों से बाहर
नगर निकल आया है सड़कों पर

अब दिखाई दिए हैं
सहस्रों की संख्या में उसके पैर
एक साथ चलते हुए
एकता के दृढ़ स्तम्भ जैसे
एक साथ बढ़ते हुए
कई हजार हैं इसके सिर
इन सिरों के समूह का एक संसार है
इस संसार का एक संघ है
राष्ट्रसंघ की तरह
इसे देखकर
मेरा सिर ऊँचा हो गया है

इस नगर के हाथ
जय के हाथ हैं
जय के हाथों का यह वन
कीर्ति और कला की क्रीड़ा का वन है।
यही हाथ देश के हाथ हैं!
कुछेक यहाँ हैं
बहुत से मोरचे पर लड़ रहे हैं
शांति और सुरक्षा के लिए
वही हाथ बहादुर हाथ हैं
इस नगर के हाथ उनके साथ हैं।

यह नगर
सच्ची सहानुभूति से
आभार प्रकट कर रहा है
जवानों के प्रति,
उनके शौर्य की प्रशंसा कर रहा है
उनके साथ
जीने-मरने की प्रतिज्ञा कर रहा है।

आज का जुलूस
अखंड एकता का
जुलूस है।

रचनाकाल: २३-०९-१९६५