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नगर यह तो कुहरे में डूबा हुआ है / उर्मिल सत्यभूषण
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नगर यह तो कुहरे में डूबा हुआ है
न जाने यह सोया कि जागा हुआ है
नज़र ढूंढती है डग़र का किनारा
मगर किसने पर्दा सा ताना हुआ है
उजाले की नन्हीं किरण को तो देखो
घने तम को भी उसने काटा हुआ है
कहाँ मंज़िलें हैं, कहाँ मरहले हैं
मुसाफिर तो सोचो में डूबा हुआ है
जो खाई है आगे तो कुंआ है पीछे
अजब कशमकश में ये इन्सा हुआ है
ज़रा लौ दिखाना कि रस्ते को देखें
दिया तुमने उर्मिल जलाया हुआ है।