भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नजरुल स्मृति / समीर बरन नन्दी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तीस वर्षो तक गूँजती रही - अग्निवीणा ।
न तुम गा पाए ।
गाया और सुना केवल पक्षघात ने ।

अग्निवीणा बजाते रहे तुम ।
प्रिय ! मौत धीरे-धीरे
बैठ गई तुममे पक्षाघात बन ।

अचानक तुम चुप हो गए ।
सब नहीं, पर विद्रोही बनते लोग
आज भी गाते हैं - तुम्हारी अग्निवीणा ।