भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नज़रिया / अशोक कुमार
Kavita Kosh से
धरती का टुकड़ा था
प्रदेश में भी था
देश में भी था
अब तुम कह सकते हो
धरती पर क्या हो रहा है
बजाय इसके कि
प्रदेश में क्या हो रहा है
देश में क्या हो रहा है
धरती पर कोई नस्ल ही था
प्रदेश में भी था
देश में भी था
तुम नि: संकोच कह सकते हो
कि नस्लें क्यों मरी जा रही हैं धरती पर
घास के एक तिनके को तुम
रख सकते हो बेधड़क
धरती के मानचित्र पर
और कह सकते हो
कि हरियाली फैल रही है
बस यहीं तुम्हारे और मेरे नजरिये में फर्क है
बस रख देना थोड़ी आग वहीं
जहाँ सूखे पत्ते हों
कि ज़रूरी है आग
हरियाली के लिये भी।