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नज़र-ए-ग़ालिब / जयंत परमार
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तुंद शोले मेरी लह्द में थे
तौफ़-ओ-तावीज़ भी सनद में थे
दिल ने चाहा छुपा लूँ आँखों में
वे सितारे जो दिल की हद में थे
इन जुनूँ सरपसंद था गोया
कुछ शफ़क़ हौसले शबद में थे
जब भी पढ़ता हूँ ताज़ा लगते हैं
रंग क्या-क्या मियाँ असद में थे