भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नज़र-नज़र में लिए तेरा प्यार फिरते हैं / हबीब जालिब
Kavita Kosh से
नज़र-नज़र में लिए तेरा प्यार फिरते हैं
मिसाल-ए-मौज-ए-नसीम-ए-बहार फिरते हैं
तिरे दयार से ज़र्रों ने रौशनी पाई
तिरे दयार में हम सोगवार फिरते हैं
ये हादिसा भी अजब है कि तेरे दीवाने
लगाए दिल से ग़म-ए-रोज़गार फिरते हैं
लिए हुए हैं दो आलम का दर्द सीने में
तिरी गली में जो दीवाना-वार फिरते हैं
बहार आ के चली भी गई मगर 'जालिब'
अभी निगाह में वो लाला-ज़ार फिरते हैं