भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नज़र-नज़र में लिए तेरा प्यार फिरते हैं / हबीब जालिब

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नज़र-नज़र में लिए तेरा प्यार फिरते हैं
मिसाल-ए-मौज-ए-नसीम-ए-बहार फिरते हैं

तिरे दयार से ज़र्रों ने रौशनी पाई
तिरे दयार में हम सोगवार फिरते हैं

ये हादिसा भी अजब है कि तेरे दीवाने
लगाए दिल से ग़म-ए-रोज़गार फिरते हैं

लिए हुए हैं दो आलम का दर्द सीने में
तिरी गली में जो दीवाना-वार फिरते हैं

बहार आ के चली भी गई मगर 'जालिब'
अभी निगाह में वो लाला-ज़ार फिरते हैं