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नज़र उल्फ़त भरी अक्सर ग़ज़ब सौगात करती है / रंजना वर्मा

नज़र उल्फ़त भरी अक़्सर ग़ज़ब सौगात करती है
मिलन की रात शीतल चाँदनी को मात करती है

हवा जब इश्क़ की चलती निगाहें शर्म से झुकतीं
रहें खामोश लब ग़र तो नजर भी बात करती है

कभी जब खेत पर दिल के पड़ा हो हिज्र का सूखा
निगाहे इश्क उल्फ़त की अजब बरसात करती है

लबों पर हो तबस्सुम किन्तु कुछ कहना भी हो मुश्किल
छलक कर आँख तब ज़ाहिर दिली जज़्बात करती है

अजब है खेल किस्मत का ख़ुदा के इक इशारे पर
कभी ग़म तो कभी खुशियाँ हमें सौग़ात करती है