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नज़र को क़ुर्बे शनासाई बाँटने वाले / हनीफ़ राही

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नज़र को क़ुर्बे शनासाई बाँटने वाले
कभी तो हाथ आ परछाई बाँटने वाले

अकेलापन दरो दीवार से टपकता है
कहाँ गये मिरी तन्हाई बाँटने वाले

ये मुंह से सूखे निवाले भी छीन लेते हैं,
बहुत ग़रीब हैं महंगाई बाँटने वाले

हमारे शह्र को तेरी बड़ी ज़रूरत है,
इधर भी आ कभी अच्छाई बाँटने वाले

कभी ये सोच के तेरे भी अपने बच्चे हैं
हमारी नस्ल को नंगाई बाँटने वाले

ज़माना क्या हुआ अब जो नज़र नहीं आते
वफ़ा की प्यार की बीनाई बाँटने वाले