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नज़र न आतीं ख़ुशी की फसलें / कैलाश झा 'किंकर'
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नज़र न आतीं ख़ुशी की फसलें
गयी हैं अबकी रवी की फसलें।
खुशी तो मिलती तभी है मुझको
जभी मचलती सभी की फसलें।
गुनाह-गारों को छूट देकर
चुनाव की भी खड़ी की फसलें।
खराब लत में नयी ये पीढ़ी
फँसी हुईं हैं सदी की फसलें।
झबर-झबर में मरी हैं मछली
लुटी हैं सारी नदी की फसलें।
कहीं न नेकी की बात होती
उगी हैं हरसू बदी की फसलें।