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नज़र में ख़्वाब की दुनियाँ बसाये फिरते हैं / रंजना वर्मा

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नज़र में ख़्वाब की दुनियाँ बसाये फिरते हैं
सभी से दर्द को अपने छुपाये फिरते हैं

हमें जो प्यार की दौलत खुदा ने है बख़्शी
उसे जमाने में हम भी लुटाये फिरते हैं

दिया था जख़्म जो तुमने हमें जुदा हो कर
वो दर्द अब भी जिगर में दबाये फिरते हैं

गुनाह लोग हैं कहने लगे मुहब्बत को
उसी गुनाह का परचम उठाये फिरते हैं

अँधेरी राह न बन जाये किसी की दुश्मन
इसी से राह में शम्मा जलाये फिरते हैं

फ़िज़ाएँ गाने लगीं गीत फिर मसर्रत के
किसी की याद लिये गुनगुनाये फिरते हैं

सियासतों की अजब बात है जमाने में
ये नफरतों की अगन को बढाये फिरते हैं