भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नज़र में मेरी साँवरे तू ही तू है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
नज़र में मेरी साँवरे तू ही तू है।
तेरे दर्श की अब मुझे आरजू है॥
तमन्ना सभी की मिले प्यार तेरा
मगर किस तरह हो रही गुफ़्तगू है॥
हजारों बुराई भरी तन बदन में
हुआ मन हमारा तेरे रूबरू है॥
खड़ी द्रौपदी रो रही है सभा में
पड़ी आज संकट में ये आबरू है॥
चरण में तेरे शीश अपना झुकाऊँ
सुनो श्याम मेरी यही जुस्तजू है॥
हमेशा रहा ख़्वाब में जो समाया
मेरे श्याम तू तो वही हूबहू है॥
मेरा साँस औ आस विश्वास मेरा
तुझी पर ख़तम है तुझी से शुरू है॥