भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नज़र से गुफ़्तगू ख़ामोश लब तुम्हारी तरह / बशीर बद्र
Kavita Kosh से
नज़र से गुफ़्तगू ख़ामोश लब तुम्हारी तरह
ग़ज़ल ने सीखे हैं अंदाज़ सब तुम्हारी तरह
जो प्यास तेज़ हो तो रेत भी हैं चादरे आब
दिखाई दूर से देते हैं सब तुम्हारी तरह
हवा की तरह मैं बेताब हूँ के शाख़ ए गुलाब
लहकती है मिरी आहट पे अब तुम्हारी तरह
मिशाल ए वक़्त में तस्वीर ए सुबह शाम हूँ अब
मिरे वजूद पे छाई है शब तुम्हारी तरह
सुनाते हैं मुझे ख़्वाबों की दास्ताँ अक़्सर
कहानियों के पुर असरार लब तुम्हारी तरह