नज़र हुस्न-आश्ना ठहरी वो ख़िलवत हो कि जलवत हो।
जब आँखें बन्द कीं तसवीरे-जानाँ देख लेते हैं।
वो खुद सर से क़दम तक डूब जाते हैं पसीने में।
मेरी महफ़िल में जो उनको, पशेमां देख लेते हैं।
‘सफ़ी’ रहते हैं जानो-दिल फ़िदा करने पै आमादा।
मगर उस वक़्त जब इन्साँ को इन्साँ को देख लेते हैं।