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नज़्रे-फ़ैज़ / कांतिमोहन 'सोज़'
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(नज़्रे-फ़ैज़)
'आए कुछ अब्र कुछ शराब आए।
उसके बाद आए जो अज़ाब आए'॥
--फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ज़िल्लतो-ख्वारिओ-सियहबख्ती<ref>अपमान, बदनामी और दुर्भाग्य</ref>
इश्क़ में हम भी कामयाब आए।
तुझसे मंसूब हो मेरी हस्ती
तू न आए तो तेरा ख़्वाब आए।
तिश्नगी खो चुकी है बीनाई<ref>दृष्टि</ref>
अब तो जैसी मिले शराब आए।
तुझको भूलूं कि तुझको याद करूं
जब कोई वक़्ते-इंतख़ाब<ref>चुनने का मौक़ा</ref> आए।
याद के क़ाफिले उतरते हैं
जैसे वादी में इनक़लाब आए।
सोज़ पर सैकड़ों सवाल उठे
वो जो आए तो लाजवाब आए॥
2017
शब्दार्थ
<references/>