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नटखट किताबें / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
बस्ते के अंदर हैं नटखट किताबें,
करती हैं आपस में खटपट, किताबें।
हिंदी की इंगलिश से बिलकुल न बनती।
किसी दिन तो दोनों में बस ऐसी ठनती।
हो जाती हैं गुत्थम-गुत्था दो पल में।
मेल नहीं हो पाता जब इनके दल में
लगती हैं तब जैसे झंझट किताबें।
कहो कुछ तो इनकी समझ में न आता।
बिना बात ही इनको गुस्सा चढ़ आता।
कहाँ तक कहे कोई इनकी कहानी।
वही नोचा-नाची, वही खींचा-तानी,
उड़ती हैं पन्नों में फट-फट किताबें।
अकेली गणित ही है इन सबमें सीधी।
न करती किसी से लड़ाई कभी भी।
सदा साफ रहती नई जिल्द पहने
गर बाकी सब भी लगें ऐसे रहने
सहेली बने सारी झटपट किताबें।