नतीजा कुछ न निकला उनको हाल-दिल सुनाने का 
वो बल देते रहे आँचल को ,बल खाता रहा आँचल 
इधर मज़बूर था मैं भी, उधर पाबन्द थे वो भी 
खुली छत पर इशारे बन के लहराता रहा आँचल 
वो आँचल को समेटे जब भी मेरे पास से गुज़रे 
मिरे कानों में कुछ चुपके से कह जाता रहा आँचल