भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नदियाँ इंसानों के जैसे नहीं होते / भूपिन / चन्द्र गुरुङ

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नदियाँ
इंसान की तरह राजनीति नहीं करती
नदियाँ
इंसान की तरह कुटनीतियां नही जानती
निर्जीव चेतना के दिवारों को गिराकर
भद्दे हाथों को उठाती हुई नदियाँ
कीचड नही उछालती
पानी निषेध नहीं करता।

नदियाँ
रंगभेद नहीं करती
नदियाँ
जाति भेद नहीं करती
नदियों के संविधान में
छोटे स्रोत को भी
सागर बनने का उतना ही अधिकार है
छोटी नदी को भी
सागर बनने का उतना ही अधिकार है
बिना किसी रोक टोक के
पहाड चढ सकती है नदियाँ
पहाड फोड सकती है नदियाँ।

नदियाँ
मन हुआ तो सूख जाती हैं
मन हुआ तो फैल जाती हैं
पर कभी भी नदियाँ
इंसान की तरह झुकना नहीं जानती
इंसान की तरह दुखी नहीं होती।

नदियाँ इंसानों की तरह
स्वाभिमान पर चोट लगने के डर से
सृष्टि द्वारा ठगे हुए दुर्बल छोटे नदियों को देखकर
दूर से ही बचकर नहीं बहती
नदियाँ इंसानों की तरह
रंग न मिलने के डर से
अलग रास्ते ढूँढ कर नही बहती
नदी का गंदा पानी
नदी के स्वच्छ पानी के साथ मिल सकता है
नदी का स्वच्छ पानी
नदी के गंदे पानी के साथ मिल सकता है
नदियाँ जन्मजात काली नहीं होते
नदियाँ जन्मजात गोरी नहीं होती
नदियाँ आर्य मंगोल नहीं होती
हिन्दू ,मुसलमान नहीं होती नदियाँ
बौद्ध, ईसाई नहीं होती नदियाँ।

नदियाँ
नदियों के जैसी ही होती हैं
इंसानों के जैसी नहीं होती।