भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नदिया किनारे कान्हा बंसिया बजावेलें / महेन्द्र मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नदिया किनारे कान्हा बंसिया बजावेलें
पवनवाँ झिर-झिर बहेला ए राम। पवनवाँ।
बंसिया सबद सुनी जागे प्यारी रधिका
परनवाँ कइसे राखीं हो राम। परनवाँ।
बाट रे बटोहिया तूँ लगबऽ हमरो भइया
सनेसवा हमरो ले ले जइहऽ राम। सनेसवा।
चारों ओर सखिया रे घेरली बदरिया
चुनरिया हमरो भींजेला ए राम चुनरिया।
बारह बरिस पर पिया मोर अइलें
चदरिया तानि के सुतेलें ए राम। चदरिया।
कहत महेन्द्र कान्हा निपटे अनारी
बयसवा हमरो बीतेला ए राम। बयसवा