भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नदिया के तीरे-तीरे हे अशोका के गछिया / भोजपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नदिया के तीरे-तीरे हे अशोका के गछिया,
हाँ रे, ताही तरह हरवहिया रे भइया पटुका पसारी नीन भर सोऊल रे।।१।
हाँ रे, बाट के बटोहिया रे तूहूँ मोरा भइया,
हाँ रे, सनेसवा सँवरो लगे जाई कहिहे।।२।।
हाँ रे, डगरे बुलाय बुलि हाँक मारे बटोहिया,
हाँ रे, केकरे हरवहिया रे बहिनी पानी के पिआसल, पानी भला माँगेले।।३।।
लेहु रे ननदी रे बासी-खोसी भातवा,
हाँ रे, हमहूँ लेइब रे ननदी, गंगा-जमुनवाँ अति जुड़ि पानीया रे।।४।।
हाँ रे, अगिला हरवहिया के देबों रे ननदी, बासी-खोसी भातवा
हाँ रे, पछिला हरवहिया के देबों गंगा-जमुनवाँ अति जुड़ि पानी।।५।।
हाँ रे, बीचिला हरवहिया ही देबों झालर छतिया
हाँ रे, बपुरा अनुनिया के देबों, आँचरा झोंपल लवरंग बेदना।।६।।