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नदी-समन्दर / नवनीत पाण्डे
Kavita Kosh से
नदियाँ
नदियाँ हैं
और बताती भी हैं
कि वे नदियाँ हैं
तो
समन्दर को
किस बात का जौम है
क्यूँ नहीं बताता
वह वाकई समन्दर है
क्यूँ नहीं वह
शान्त कल-कल
निर्मल मीठा नदी-सा
क्यूँ है
हर पल
खारा ही खारा
दहाड़ता
सुनामियों
प्रलय की
संभावनाओं से भरा