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नदी-सा बहता हुआ दिन / सत्यनारायण
Kavita Kosh से
कहाँ ढूँढ़ें--
नदी-सा
बहता हुआ दिन ।
वह गगन भर धूप
सेनुर और सोना,
धार का दरपन
भँवर का फूल होना,
हाँ,
किनारों से
कथा कहता हुआ दिन !
सूर्य का हर रोज़
नंगे पाँव चलना
घाटियों में हवा का
कपड़े बदलना,
ओस
कुहरा, घाम
सब सहता हुआ दिन !
कौन देगा
मोरपंख से लिखे छन
रेतियों पर
सीप-शंखों से लिखे छन,
आज
कच्ची भीत-सा
ढहता हुआ दिन !