सीता को
किसने दिया था
हँसने किसने सुना था
उसके मौन को
एक नदी ही थी
जिसने जाना उसे
तभी तो
भटकती है वह
आज भी
पगली-सी
घण्टियाँ
अजानें
मन्दिर
मसजिद
न हों अगर...
दूत
बिचौलिए
सब छोड़ जाएँ अयोध्या
तो वहाँ की
गलियों में खेलते
बच्चों के साथ मिलकर
ढूँढ़ ही लेगी वह
सीता को
नदी का थमेगा
अगर भटकना
तो गूँगी अयोध्या भी
होगी मुखर..
देखना एक दिन !