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नदी का पालित है मेरा यह जीवन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर

नदी का पालित है मेरा यह जीवन।
नाना गिरि शिखर दान उसकी शिराओं में प्रवाहित है,
नाना सैकत मृत्तिका से क्षेत्र उसका रचा गया,
प्राणों का रहस्य रस नाना दिशाओं से
संचारित हुआ नाना शस्यों में।
पूर्व पश्चिम के नाना गीत स्रोत जाल में
वेष्टित है उसका स्वप्न और जागरण।
जो नदी विश्व की दूती है
दूर को निकट जो लाती है,
अपरिचित अभ्यर्थना को ले आती है घर के द्वार पर,
उसने रचा था मेरा जन्मदिन,
चिरदिन उसके स्रोत में
बन्धन से बाहर मेरा चलायमान नीड़
बहता ही चलता है तीर से तीर पर।
मैं हूं व्रात्य, मैं हूं पथचारी,
अवारित आतिथ्य के अन्न से पूर्ण हो उठता है
बार-बार निर्विचार जन्मदिन मेरा थाल।