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नदी की कराह / नीरजा हेमेन्द्र

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ज़िन्दगी रोज़ यूं ही
वक्त की नदी में
घुलती रहेगी रेत हो कर
मैं प्रतीक्षा कर रही हूँ
उस दिन का जब
 नदी में उठेगा एक
तूफ़ान/ नदी का पानी उफन कर
दूर-दूर तक फेेेैल जायेगा
किनारों को पार करता हुआ
बह जायेगी ढ़ेर सारी रेत
एक ही दिन में।
उसके बाद तुम्हे
स्वच्छ शान्ति दिखाई देगी
नदी म,ें किनारों में,
सर्वत्र
तुम नही सुनते
प्रतिक्षण, धीरे-धीरे
रेत को बहाती हुई
 नदी की दुःख भरी कराह।