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नदी की तेज धार / केदारनाथ अग्रवाल

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बह रही नदी की तेज धार
जल बार-बार करता प्रहार
उद्धत तरंग से दुर्निवार
कट रहा खड़ा ऊँचा कगार,
चल रहा क्षरण क्षण-क्षण अधीर

रचनाकाल: २८-०७-१९७६, मद्रास